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Railway Samanya Adhyayan

by Sanjet Kumar

रेलवे सामान्य अध्ययन (पूर्णतः संशोधित संस्करण) रेलवे भर्ती बोर्ड परिक्षा के हेतु स्पीडी प्रकाशन के द्वारा ये किताब प्रकाशित किया है। रेलवे के विभिन्न पदों के लिए होने वाली परीक्षाओं में 27 वर्षों (1992-2018) में आयोजित रेलवे के लगभग 558 परीक्षाओं के पूछे गए प्रश्नों का विस्तृत व्याख्या सहित हल मुख्य बिन्दु के रूप में प्रस्तुत किया गया है। साथ-ही-साथ भारत के राज्य के अंतर्गत भारत के उन महत्वपूर्ण 29 राज्यों एवं 7 केन्द्र शासित राज्यों का पूर्ण विवरण दिया गया है अति महत्त्वपूर्ण विषय के अंतर्गत क्षेत्रीय सामान्य ज्ञान, राष्ट्रिय प्रतीक एवं चिह्न, पुरस्कार एवं सम्मान, खेल-कूद, विश्व दर्शन, परिवहन, संचार, फिल्म जगत, उद्योग, बैंकिंग, मुद्रा-प्रणाली, बजट एवं वैट, कला एवं संस्कृति, मानव शरीर, भारतीय प्रतिरक्षा, हमारी पृथ्वी, नोबेल पुरस्कार, प्रमुख गवर्नर जनरल एवं वायसराय के अलावा इतिहास, राज्यव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, भूगोल, विज्ञान तथा कम्प्यूटर से संबंधित विषयों पर इनके अंतर्गत पूछे जाने वाले प्रश्नों का क्रमानुसार संग्रह दिया गया है।

Punar Milan

by Penny Jordan

Jab ek vivah samaroh mein Bel ne apne purva pati Luke ko pass bethe dekha, toh woh samaj gayi ki ab dhamaka hona tay hai. Use ab bhi is baat par yakin tha ki wahi uske jeevan ka ekmatra sachcha prem hai- aur yah unke purva bhavavesh ki chingari ko dobara sulgaane ke liye bilkul upyukt mauka tha...

Prismatic Jane Eyre: Close-Reading a World Novel Across Languages

by Matthew Reynolds Others

Jane Eyre, written by Charlotte Brontë and first published in 1847, has been translated more than five hundred times into over sixty languages. Prismatic Jane Eyre argues that we should see these many re-writings, not as simple replications of the novel, but as a release of its multiple interpretative possibilities: in other words, as a prism. Prismatic Jane Eyre develops the theoretical ramifications of this idea, and reads Brontë’s novel in the light of them: together, the English text and the many translations form one vast entity, a multilingual world-work, spanning many times and places, from Cuba in 1850 to 21st-century China; from Calcutta to Bologna, Argentina to Iran. Co-written by many scholars, Prismatic Jane Eyre traces the receptions of the novel across cultures, showing why, when and where it has been translated (and no less significantly, not translated – as in Swahili), and exploring its global publishing history with digital maps and carousels of cover images. Above all, the co-authors read the translations and the English text closely, and together, showing in detail how the novel’s feminist power, its political complexities and its romantic appeal play out differently in different contexts and in the varied styles and idioms of individual translators. Tracking key words such as ‘passion’ and ‘plain’ across many languages via interactive visualisations and comparative analysis, Prismatic Jane Eyre opens a wholly new perspective on Brontë’s novel, and provides a model for the collaborative close-reading of world literature. Prismatic Jane Eyre is a major intervention in translation and reception studies and world and comparative literature. It will also interest scholars of English literature, and readers of the Brontës.

Prismatic Jane Eyre: Close-Reading a World Novel Across Languages

by Matthew Reynolds Others

Jane Eyre, written by Charlotte Brontë and first published in 1847, has been translated more than five hundred times into over sixty languages. Prismatic Jane Eyre argues that we should see these many re-writings, not as simple replications of the novel, but as a release of its multiple interpretative possibilities: in other words, as a prism. Prismatic Jane Eyre develops the theoretical ramifications of this idea, and reads Brontë’s novel in the light of them: together, the English text and the many translations form one vast entity, a multilingual world-work, spanning many times and places, from Cuba in 1850 to 21st-century China; from Calcutta to Bologna, Argentina to Iran. Co-written by many scholars, Prismatic Jane Eyre traces the receptions of the novel across cultures, showing why, when and where it has been translated (and no less significantly, not translated – as in Swahili), and exploring its global publishing history with digital maps and carousels of cover images. Above all, the co-authors read the translations and the English text closely, and together, showing in detail how the novel’s feminist power, its political complexities and its romantic appeal play out differently in different contexts and in the varied styles and idioms of individual translators. Tracking key words such as ‘passion’ and ‘plain’ across many languages via interactive visualisations and comparative analysis, Prismatic Jane Eyre opens a wholly new perspective on Brontë’s novel, and provides a model for the collaborative close-reading of world literature. Prismatic Jane Eyre is a major intervention in translation and reception studies and world and comparative literature. It will also interest scholars of English literature, and readers of the Brontës.

Prayogik Bhugol class 12 - RBSE Board: प्रायोगिक भूगोल कक्षा 12 - आरबीएसई बोर्ड

by Madhyamik Shiksha Board Rajasthan Ajmer

प्रायोगिक भूगोल कक्षा 12 वीं का पुस्तक हिंदी भाषा में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर ने प्रकाशित किया गया है । इस पाठ्यपुस्तक में छह अध्याय और उनके अभ्यास प्रश्न दिये गये है । इस पाठ्यपुस्तक में मानचित्र, आंकड़ों का निरूपण, आंकड़ें और आंकडों का एकत्रीकरण, समपटल सर्वेक्षण, क्षेत्रीय अध्ययन इन अध्यायो का विस्तार मे विविरण किया गया है ।

Pratinidhi Kahaniyan-Shekhar Joshi

by Shekhar Joshi

शेखर जोशी की कहानियों में शिल्प और संवेदना के अंतर्संबंधो की सुरम्य रचना के साथ जीवन और समाज के सहज उन्नयन एवं परिवर्तनकारी दृष्टि के प्रति दायित्वबोध साफ़ दृष्टिगोचर होता है ! कथात्मक गठन में भाषा के सूक्ष्म उपयोग का उन जैसा आधुनिक बोध हिन्दी कहानी में अपरिचित है ! अत्यन्त सहज और ठंडी भाषा के माध्यम से ए कहानियाँ हमारे समक्ष जिस यथार्थ का उद्घाटन करती हैं, उसके पीछे समकालीन जन-जीवन की बहुविध विडम्बनाओं को महसूस किया जा सकता है ! सपनों की वास्तविकता से अपरिचित बच्चों की ख़ुशी हो या बिरादरी की दलदल में फँसे व्यक्ति की मनोदशा-लेखकीय दृष्टि उन्हें एक अर्थ-गाम्भीर्य से भर देती है ! उसके पास आदर्शवादी निर्णय हैं तो उनके सामने खड़ा कठोर और भयावह यथार्थ भी है ! वस्तुतः शेखर जोशी की ये कहानियाँ बिना किसी शोर-शराबे के हमारी सोच के विभिन्न स्तरों को स्पर्श और झंकृत करनेवाले रचनात्मक गुणों से परिपूर्ण हैं !

Pratinidhi Kahaniyan-Rangeya Raghav

by Rangeya Raghav

प्रस्तुत संकलन में जिन दस कहानियों को प्रस्तुत किया है वे हैं :‘पंच परमेश्वर’, ‘नारी का विक्षोभ’,‘देवदासी’, ‘तबेले का धुँधलका’,‘ऊँट की करवट’, ‘भय’, ‘जाति और पेशा’,‘गदल’, ‘बिल और दाना’ तथा ‘कुत्ते की दुम और शैतान : नए टेकनीक्स’।

Pratinidhi Kahaniyan-Rajkaml Chaudhry

by Rajkamal Choudhary

प्रस्तुत संकलन की कहानियाँ रोटी, सेक्स एवं सुरक्षा के जटिल व्याकरण से जूझते आम जनजीवन की त्रासदी की कथा कहती हैं । राजकमल की मैथिली कहानियों के पात्र जहाँ सामाजिक मान्यताओं के व्‍यूह में फँसकर भी अपनी परंपराओं के मानदण्ड में परहेज से रहते हैं वहाँ इनकी हिन्दी कहानियों के पात्र महानगरीय जीवन के कशमकश में टूट-बिखर जाते हैं । यौन विकृतियाँ इनकी मैथिली एवं हिन्दी-दोनों भाषाओं की कहानियों का प्रमुख विषय है और दोनों जगह यह अर्थतंत्र द्वारा ही संचालित होती हैं । ये कहानियाँ कहानीकार की गहन जीवनानुभूति और तीक्ष्‍णतम अभिव्यक्ति का सबूत पेश करती हैं । राजकमल की कहानियाँ न केवल विषय के स्तर पर, बल्कि भाषा एवं शिल्प की अन्यान्य प्रविधियों के स्तर पर भी एक चुनौती है जो कई मायने में सराहनीय भी है और ग्रहणीय भी । इनकी कहानियों का सबसे बड़ा सच है कि जहाँ से इनकी कहानी खत्म होती है, उसकी असली शुरुआत वहीं से होती है ।

Pratinidhi Kahaniyan-Mithileshwar

by Mithileshwar

जाने-माने कथाकार मिथिलेश्वर हिन्दी कथा-साहित्य में एक अलग महत्त्व रखते हैं । प्रेमचंद और रेणु के बाद हिन्दी कहानी से जिस गाँव को निष्कासित कर दिया गया था, अपनी कहानियों में मिथिलेश्वर ने उसी की प्रतिष्ठा की है । दूसरे शब्दों में, वे ग्रामीण यथार्थ के महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं और उन्होंने आज की कहानी को संघर्षशील जीवन-दृष्टि तथा रचनात्मक सहजता के साथ पुन: सामाजिक बनाने का कार्य किया है । इस संग्रह में शामिल उनकी प्राय: सभी कहानियाँ बहुचर्चित रही हैं । ये सभी कहानियाँ वर्तमान ग्रामीण जीवन के विभिन्न अन्तर्विरोधों को उद्‌घाटित करती हैं, जिससे पता चलता है कि आजादी के बाद ग्रामीण यथार्थ किस हद तक भयावह और जटिल हुआ है । बदलने के नाम पर गरीब के शोषण के तरीके बदले हैं और विकास के नाम पर उनमें शहर और उसकी बहुविध विकृतियां पहुँची हैं । निस्सन्देह इन कहानियों में लेखक ने जिन जीवन-स्थितियों और पात्रों का चित्रण किया है, वे हमारी जानकारी में कुछ बुनियादी इजाफा करते हैं और उनकी निराडंबर भाषा-शैली इन कहानियों को और अधिक सार्थक बनाती हैं ।

Pratinidhi Kahaniyan-Jogendra Paul

by Jogendra Paul

पहली बार मैं जब जोगेंद्र पाल से मिला तो वो ठीक अपनी शक्ल, किरदार और आदतों के एतवार से एक मालदार जौहरी नजर आया | बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरा कयास ज्यादा गलत भी न था | वो जौहरी तो जरूर है, लेकिन हीरे-जवाहरात का नहीं; अफसानों का - और मालदार भी लेकिन अपनी कला में | - कृष्ण चंदर | एक परिचय : धरती का काल उर्दू कथा-साहित्य में जोगेंद्र पाल अपने रचनात्मक अनुभव के लिए नए-नए महाद्वीप खोजनेवाले कथाकार हैं-चंद उन कथाकारों में से एक जिन्होंने अपनी आँखे बाहर की और खोल राखी हैं और जो अपने दिल के रोने की आवाज पर भी कान धरते हैं...| - डॉ. अनवर सदीद औरक | लाहौर जोगेंद्र पाल के यहाँ कहानी बयान नहीं होती, बल्कि सामने जिंदगी के स्टेज पर घटित होती है | उनके चरित्र उस स्टेज से निकलकर हमारे हवास के इतने करीब आ जाते हैं कि हमें अपने वजूद में उनकी साँसों का उतार-चढाव महसूस होता है...| - डॉ. कमर रईस | जोगेंद्र अपल : फेन और शख्सियत जोगेंद्र पाल ने मुर्दा लफ्जों को नई जिंदगी अता करने की तख्लीकी (रचनात्मक) कोशिश की है ; उनमें आदम बू पैदा की है | उनकी रचनातमक भाषा जानने की जुबान नहीं, जीने की जुबान है | - निजाम सिद्दीकी

Pratinidhi Kahaniyan-Hrishikesh Sulabh

by Hrishikesh Sulabh

''अपनी कहानियों पर बात करना मेरे लिए कठिन काम है। बहुत हद तक अप्रिय भी। लिखी जा चुकी और प्रकाशित हो चुकी कहानियों से अक्सरहाँ मैं पीछा छुड़ाकर भाग निकलता हूँ, पर मुझे लगता है कि यह मेरा भ्रम ही है। मेरी कहानियों के कुछ पात्र लगातार मेरा पीछा करते हैं और अपनी छवि बदलकर, किसी लिखी जा रही नई कहानी में घुसने की बार-बार कोशिशें करते हैं। कई बार तो घुस भी आते हैं और मैं उन्हें न रोक पाने की अपनी विवशता पर हाथ मलते रह जाता हूँ। जैसे, 'वधस्थल से छलाँगÓ का रामप्रकाश तिवारी, जो 'यह गम विरले बूझे' या 'काबर झील का पाखी' जैसी कहानियों में घुस आया। मैंने अपनी कहानियों में प्रवेश के लिए किसी एक रास्ते का चुनाव नहीं किया। हर कहानी में प्रवेश के लिए मेरी राह बदल जाती है। कभी किसी पात्र की बाँह पकड़कर प्रवेश करता हूँ, तो कभी कोई घटना या व्यवहार या स्मृति या विचार कहानी के भीतर पैठने के लिए मेरी राहों की निर्मिति करते हैं। हमेशा एक अनिश्चय और अनिर्णय की स्थिति बनी रहती है। हर बार नई कहानी शुरू करने से पहले मेरा मन थरथर काँपता है। शायद यही कारण है कि बहुत कम कहानियाँ लिख सका हूँ। मेरे कुछ मित्रों का मानना है कि कहानी और नाटक लिखने के बीच आवाजाही के कारण मेरी कहानियों पर आलोचकों की नज़र नहीं पड़ी। पर यह सच है कि नाटक और कहानी के बीच मेरी यह आवाजाही मुझे बहुत प्रिय है। हर बार नौसिखुए की तरह अथ से आरम्भ करना मुझे पुनर्नवा करता है। मैं यह करते रहना चाहता हूँ।'' —भूमिका से

Pratinidhi Kahaniyan-Geetanjali Shree

by गीतांजलि श्री

यह गीतांजलि श्री की कहानियों का प्रतिनिधि संचयन है। गीतांजलि की लगभग हर कहानी अपनी टोन की कहानी है और विचलन उनके यहाँ गभग नहीं के बराबर है और यह बात अपने आपमें आश्चर्यजनक है क्योंकि बड़े-से-बड़े लेखक कई बार बाहरी दबावों और वक़्ती ज़रूरतों के चलते अपनी मूल टोन से विचिलत हुए हैं। यह अच्छी बात है कि गीतांजलि श्री ने अपनी लगभग हर कहानी में अपनी सिग्नेचर ट्यून को बरकरार रखा है। लेकिन सवाल यह है कि गीतांजलि कीकहानियों की यह मूल टोन आखिर है क्या? एक अजीब तरह का फक्कड़पन, एक अजीब तरह की दार्शनिकता, एक अजीब तरह की भाषा और एक अजीब तरह की रवानी। लेकिन ये सारी अजीबियतें ही उनके कथाकार को एक व्यक्तित्व प्रदान करती हैं। यहाँ यह कहना ज़रूरी है कि यह सब परम्परा से हटकर है और परम्परा में समाहित भी।

Pratinidhi Kahaniyan-Amarkant

by अमरकांत

अमरकांत की कहानियों में मध्यवर्ग, विशेषकर निम्न-मध्यवर्ग के जीवनानुभवों और जिजीविषाओं का बेहद प्रभावशाली और अन्तरंग चित्रण मिलता है ! अक्सर सपाट-से नजर आनेवाले कथ्यों में भी वे अपने जिवंत मानवीय संस्पर्श के कारण अनोखी आभा पैदा कर देते हैं ! सहज-सरल रूपबंधवाली ये कहानियां जिंदगी की जटिलताओं को जिस तरह समेटे रहती हैं, कभी-कभी उससे चकित रह जाना पड़ता है ! लेकिन यह अमरकांत की ख़ास शैली है ! अमरकांत के व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा में भी एक ख़ास किस्म की फक्कड़ता है ! लोक-जीवन के मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी भाषा में माटी का सहज स्पर्श तथा ऐसी सोंधी गंध रच-बस जाती है जो पाठकों को किसी छदम उदात्तता से परे, बहुत ही निजी लोक में, ले जाती है ! उनमे छिपे हुए व्यंग्य से सामान्य स्थितियाँ भी बेहद अर्थव्यंजक हो उठती हैं ! अमरकांत के विभिन्न कहानी-संग्रहों में चरित्रों का विशाल फलक ‘जिन्दगी और जोंक’से लेकर ‘मित्र मिलन’ तक फैला हुआ है ! उन्ही संग्रहों की लगभग सब चर्चित कहानियां एक जगह एकत्र होने के कारण इस संकलन की उपादेयता निश्चित रूप से काफी बढ़ गई है !

Pratinidhi Kahaniyan-Akhilesh

by Akhilesh

अखिलेश की कहानियाँ बातूनी कहानियाँ हैं . .गजब का बतरस है उनमें । वे अपने पाठकों से जमकर बातें करती हैं अपने सबसे प्यारे दोस्त की तरह गलबहियाँ लेकर वे आपको आगे और. आगे ले जाती हैं और उनमें उस तरहकी सभी बातें होती हैं जो दो दोस्तों के बीच घट सकती हैं । (कोई चाहे तो इसे कहानीपन भी कह सकता है ।) यही वजह है कि बेहद गम्भीर विषयों पर लिखते हुए भी अखिलेश की कहानियाँ . जबर्दस्ती की गम्भीरता कभी नहीं झड़ती हैं । पढ़ते हुए कई बार एक मुस्कान-सी ओठों पर आने को ही होती है । क्योंकि उनके यहाँ कोई बौद्धिक आतंक, सूचना का कोई घटाटोप या किसी और तरह का बेमतलब का जंजाल चक्कर नहीं काटता कि पाठक कहीं' और ही फँसकर रह जाए. । इन कहानियों की एक और खूबी येह भी है कि ये कहानियाँ पाठक से ही नहीं बात करती चलती बल्कि खुद उनके भीतर भी कई तरह के समानान्तर संवाद चलते रहते हैं 1 वे खुद भी अपने चरित्रों से बतियाते चलते हैं, उनके भीतर चल रही उठा- पटक को .अपने अखिलेशियन अन्दाज में' सामने लाते हुए । क्या है ये अखिलेशियन अन्दाज ! उसकी पहली पहचान यह है कि वह बिना मतलब गम्भीरता का ढोंग नहीं करते बल्कि उनकी कहानियाँ अपने पाठकों को भी थोपी हुई गम्भीरता से दूर ले जानेवाली कहानियाँ हैं. । उनकी कहानियों का गद्य मासूमियत वाले अर्थों में हँसमुख ? नहीं है बल्कि चुहल- भरा, शरारती पर साथ ही बेधनेवाला गद्य है ।

Prarambhik Samashti Arthashastra (Core Course 3) B.A (Hons.) Sem-II -Ranchi University, N.P.U

by J. P. Mishra

Prarambhik Samashti Arthashastra text book According to the Latest Syllabus based on Choice Based Credit System (CBCS) for Sem-II (Core Economics Course 3) from Ranchi University, Nilambar Pitambar University in hindi.

Praathamik Vidyaalay Ka Baalak - Ek Adhyayan- 2 NES-101 - IGNOU

by Indira Gandhi Rashtriya Mukta Vishvavidyalaya

NES- 101 प्राथमिक विद्यालय का बालक – एक अध्ययन खंड 2 बच्चे के विकास के सिद्धान्त एवं कारक पाठ्यक्रम में प्राथमिक विद्यालय के बालक की सामान्य तस्वीर प्रस्तुत करती है तथा विकास के विभिन्न पक्षों, यथा- संज्ञानात्मक, सामाजिक, संवेगात्मक, भाषिक, शारीरिक एवं गतिक विकास पर प्रकाश डालती है। इस खंड में मानव जीवन से सम्बधीत विकास की अवधारणा का भी संक्षिप्त विवेचन किया गया है।

Praathamik Vidyaalay Ka Baalak - Ek Adhyayan- 1 NES-101 - IGNOU

by Indira Gandhi Rashtriya Mukta Vishvavidyalaya

एन ई एस – 101 प्राथमिक विद्यालय का बालक - एक अध्ययन खंड 1 इस पाठ्यक्रम में प्राथमिक विद्यालय के बच्चो के शारीरिक, स्वास्थ्य, सामाजिक एवं संवेगात्मक पहलुओं से संबंधित आवश्यताओं और समस्याओं को शिक्षक तथा अभिभावक को समझने की आवश्यताओं का विवेचन किया गया है। इसमें शैक्षिक निर्देशन संबंधित अनेक उन किर्याकलापों की चर्चा भी की गई है। जो बच्चो को घर तथा स्कूल में समायोजन के अवसर प्रदान करते है।

Piyush Prawah class 12 - RBSE Board: पीयूष प्रवाह कक्षा 12 - आरबीएसई बोर्ड

by Madhyamik Shiksha Board Rajasthan Ajmer

पीयूष प्रवाह इस पाठ्यपुस्तक मे हिन्दी गद्य की कहानी, आत्मकथा, रेखाचित्र, उपन्यास, यात्रावृत्त एवं जीवन-चरित विधाओं की श्रेष्ठ रचनाओं को सम्मिलित किया गया है। इन रचनाओं के चयन का आधार उनकी रोचकता, विषय-विविधता एवं बोधगम्यता है। गांधी जी की आत्मकथा "सत्य के प्रयोग" के संपादित अंश से पाठकों को बाहरी दिखावे से बचने, सहयोगी एवं स्वावलम्बी बनने तथा संस्कारों के साथ सादगीपूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। ‘गौरा' (महादेवी वर्मा) रेखाचित्र में लेखिका ने स्वयं द्वारा पालित गाय का अत्यंत करुणापूरित चित्र उकेरा है।

Phans: फांस

by Sanjeev

संजीव 38 वर्षों तक एक रासायनिक प्रयोगशाला, 7 वर्षों तक 'हंस' समेत कई पत्रिकाओं के सम्पादन और स्तम्भ-लेखन से जुड़े संजीव का अनुभव संसार विविधता से भरा हुआ है, साक्षी हंम उनकी प्रायः 150 कहानियाँ और 12 उपन्यास। इसी विविधता और गुणवत्ता ने उन्हें पाठकों का चहेता बनाया है। इनकी कुछ कृतियों पर फिल्में बनी हैं, कई कहानियाँ और उपन्यास विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हैं। अपने समकालीनों में सर्वाधिक शोध भी उन्हीं की कृतियों पर हुए हैं। 'कथाक्रम', 'पहल', 'अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा', 'सुधा-सम्मान' समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित... । नवीनतम है हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मानों में से एक इफको का श्रीलाल शुक्ल स्मृति साहित्य सम्मान-2013। अगर कथाकार संजीव की भावभूमि की बात की जाये तो यह उनके अपने शब्दों में ज्यादा तर्कसंगत, सशक्त और प्रभावी होगा-“मेरी रचनाएँ मेरे लिए साधन हैं, साध्य नहीं। साध्य है मानव मुक्ति।”

Pattakhor: पत्ताखोर 

by Madhu Kankariya

स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज में हमने जहाँ विकास और प्रगति की कई मंजिले तय की हैं वहीं अनेक व्याधियाँ भी अर्जित की हैं। अनेक समाजार्थिक कारणों से हम ऐसी कुछ बीमारियों से घिरे हैं। जिनका कोई सिरा पकड़ में नहीं आता।

Pathik (KhandKavya) B.A Sem-II -Ranchi University, N.P.U

by Ramnaresh Tripathi

Pathik (KhandKavya) text book for B.A Sem-II from Ranchi University, Nilambar Pitambar University in hindi.

Pashchimee Asia Ka itihaas Generic Elective-III -B.A (Hons.) Sem-III Ranchi University, N.P.U

by Nilambar Vishvavidyalay Ranchi Vishvavidyalay

Pashchimee Asia Ka itihaas Generic Elective-III text book for B.A (Hons.) Sem-III from Ranchi University, Nilambar Pitambar University in hindi.

Pashchatya Vishwa (15vi shtabdi ke madhya se 1870 tak) F.Y.B.A. M.P. University

by R. Agarwal A. K. Mittal

पाश्चात्य विश्व 15वीं शताब्दी के मध्य से 1870ई. तक Western World Book मध्य प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में बी.ए. (इतिहास) प्रथम वर्ष के द्वितीय प्रश्न-पत्र के लिए निर्धारित नए वार्षिक पद्धाति के अनुसार पाठ्यक्रम पर आधारित है। नवीनतम् जानकारी व सरल भाषा होने के साथ-साथ पुस्तक में स्पष्ट मानचित्रा (Maps) व तालिकाआ (Charts) के द्वारा क्लिष्ट विषयों को भी विद्यार्थियों को समझने के अनुकूल बनाया गया है। पुस्तक पूर्णतया नवीन पाठ्यक्रम के अनुरूप है। प्रत्येक अध्याय से सम्बन्धित लघु एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न भी दिए गये हैं।

Pashchatya Rajniti Vicharak (Western Political Thinkers) - Ranchi University, N.P.U

by Om Gauba

पाश्चात्य राजनीति-विचारक (Western Political Thinkers) पुस्तक राजनीति विज्ञान की स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत पुस्तक में प्लेटो, अरस्तू, संत टॉमस एक्वीनास, मार्सीसियो ऑफ़ पेडुआ, मेकियावेली, हॉब्स, लॉक, रूसो, माण्टेस्क्यू, बेन्थम, जे. एस. मिल, हीगल, ग्रीन, कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओ त्से तुंग, नव वामपथ, जॉन राल्स, नौजिक तथा ज्यां पॉल सात्र्र जैसे पाश्चात्य राजनीतिक विचारकों के चिन्तन का विस्तार से उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक का प्रयोजन बस यही है की विद्यार्थी को एक ही स्थान पर विविध बिखरी हुई सामग्री उच्च स्तर की पुस्तक में उपलब्ध हो जाये। पुस्तक की भाषा सरल शैली रोचक एवं बोधगम्य है ताकि हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को यह विषय बोझ प्रतीत न हो।

Pariyavaran Vigyan class 12 - RBSE Board: पर्यावरण विज्ञान कक्षा 12 - आरबीएसई बोर्ड

by Madhyamik Shiksha Board Rajasthan Ajmer

पर्यावरण विज्ञान इस पाठ्यपुस्तक मे वायुमण्डल (Atmosphere), जैवमण्डल (Biosphere), स्थलमण्डल (Lithosphere) एवं जलमण्डल (Hydrosphere), पर्यावरण के ये चार घटक दिखाये है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, अम्ल वर्षा, जैव विविधता का ऱ्हास, सूखा, अकाल एवं बाढ़ जैसी पर्यावरणीय समस्याएं बताई है।

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